एहसास · प्रहार

प्राहार

चल उठ के तू प्रहार कर

निर्बलता का परित्याग कर|

तू पार्वती तू ही काली

खुद पर ज़रा विश्वास कर|

तेरी आन बान शान का

ऐसे ना तू उपहास कर|

चल उठ के तू प्रहार कर

निर्बलता का परित्याग कर|

तू चोट कर उस सोच पर

जो मानते तुझको बोझ बस|

तू मान बन सम्मान बन

हर घर की तू पहचान बन|

तू पंख अपने खोल कर

एक ऊँची सी उड़ान भर |

चल उठ के तू प्रहार कर

निर्बलता का परित्याग कर|

खुद की ज़रा पहचान कर

अब लाज का घूँघट खोल कर|

तू तोड़ कर वो बेड़ियां

खुद को ज़रा आज़ाद कर|

चल उठ के तू प्रहार कर

निर्बलता का परित्याग कर |

इन आँसुओं को पोछ कर

चल उठ के तू स्रिंगार कर|

ममता का आँचल फैला कर

नये जीवन का संचार कर|

तू पार्वती तू ही काली

खुद पर ज़रा विश्वास कर |

चल उठ के तू प्रहार कर

चल उठ के तू प्रहार कर ||

~Priyamvada
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23 thoughts on “प्राहार

  1. स्त्रीवाद की ज्वाला हर एक शब्द से निखर कर बाहर आ रही है…काफी उमदा रचना है…!

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  2. Got goosebumps while going through this elegant poem.
    Full of enthusiasm nd astounding valiant.

    Superb Priyamvada mam (A multifaceted lady)
    And thanks for vigorously spreading Spark of positivity.

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  3. चल उठ के तू प्रहार कर

    निर्बलता का परित्याग कर|

    तू पार्वती तू ही काली

    खुद पर ज़रा विश्वास कर|

    बेहतरीन कविता।👌👌👌

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